|| સોલંકી આદિત્યજી વૈભવ ||
।।राणा आदित्यसिंह वैभव।।
क्षात्रधर्म अर्थात् क्षत्रियों का अपने क्षात्रधर्म का पालन करते हुए
अपना जीवन निर्वाह करना ।
क्षात्रधर्म को मानना व उनके अंतर्गत आने वाले नियम ही उनके उसूल हैं जिनका पालन करना क्षत्रियों के लिए अनिवार्य है।
वैदिक काल से चले आ रहे सिद्धांत{સોલંકી નિયમવાળી સે(सोलंकी वंशावली पुस्तक के अनुसार)} :-
१.क्षात्रधर्म का पालन करना व उसपर अडिग रहना।
२.आस्तिक रहते हुए जीवन निर्वाह करना ।
३. क्रूरता का सहारा लिए बिना धन संचय करना ।
४. धर्मानुसार भोगों को भोगना ।
५. दीनता रहित प्रिय भाषण करना ।
६. शूरवीर रहना पण बढ़ चढ़कर बातें न करना ।
७. दानवीर रहना पण कुपात्र को दान न देना ।
८. साहसी हों पण घमंड न करना ।
९. दुष्टों के साथ मेल न करना ।
१०. बंधुओं से तथा प्रियों से झगड़ा न करना ।
११.ऐसे गुप्तचर न रखें जो राजभक्त न हो ।
१२. किसी को दुख दिए बिना ही काम करना ।
१३. दुष्टों से अपना अभीष्ट कार्य न करना ।
१४. अपने गुणों का वर्णन स्वयं न करना ।
१५. श्रेष्ठ पुरुषों से धन न छीनना ।
१६. नीच पुरुषों को शरण न देना ।
१७. बिना जांच पड़ताल दंड न देना ।
१८. गुप्त मंत्रणा को प्रकट न करना ।
१९. जिन्होंने कभी उपकार न किया हो उनका विश्वास न करना ।
२०. लोभियों का धन न देखना ।
२१. ईर्ष्या रहित होकर अपने पत्नी की रक्षा करना ।
२२. क्षत्रिय शुद्ध रहे परन्तु किन्हीं से घृणा न करना ।
२३. स्त्रियों का अधिक सेवन न करना ।
२४. शुद्ध भोजन करना ।
२५. उद्दंड छोड़कर पूज्यों का सत्कार करना ।
२६. निष्कपट भाव से गुरुजनों की सेवा करना ।
२७. पाखण्डी हीन होकर विद्वानोँ का सत्कार करना ।
२८. ईमानदारी से धन पाने वालों की मदद करना ।
२९. हठ/जिद्द न करना ।
३०. कार्यकुशल तथा शिक्षित होना ।
३१. किसी को झूठा आश्वसन न देना ।
३२. किसी पर कृपा कर आपेक्ष न करना ।
३३. बिना जाने किसी पर प्रहार न करना ।
३४. बिना कारण किसी पर क्रोध न करना ।
३५. शत्रुओं को मारकर शोक न करना ।
३६. कमल की भांति कोमल रहना ।
३७. स्वभाव में शांति रखना ।
३८. दूसरे से नहीँ दबना ।
३९. युद्ध मे पीठ नहीं दिखाना ।
४०. शौर्य,पराक्रम व वीरता रखना ।
४१. शोक नहीं करना ।
४२. बिना घबराहट के कार्यों में प्रवृत रहना ।
४३. दान देना ।
४४. धर्मपूर्वक शासन करना ।
४५. स्त्रियों का आदर करना ।
४६. सात्विक रहना व मदिरा से दूर रहना ।
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१००००००८. क्षात्रधर्म के विरुद्ध कुवचन न सुनना ।
(ऐसे कई उसूल हैं जिनका वर्णन यहाँ संभव नहीं है)
*इनका पालन न करने वाला पाप का भागी होता है व वो क्षत्रिय/क्षत्राणी नहीं रहते ।
*जो क्षत्रिय नही हैं (मतलब सिर्फ नाम में परिवर्तन किए हो व अन्य जाति के होते हुए भी दावा करते हैं कि वो क्षत्रिय हैं) वे इनके बारे में नही जानते ।
*जो क्षत्रिय होते हुए भी अगर इसका पालन न करते व अगर भूल जाते या पालन नहीं करते तो वे क्षत्रिय धर्म से नहीं रहते ।
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