Wednesday, 10 April 2019

क्षत्रिय धर्म ।


                || સોલંકી આદિત્યજી વૈભવ ||
                  ।।राणा आदित्यसिंह वैभव।।
क्षात्रधर्म अर्थात् क्षत्रियों का अपने क्षात्रधर्म का पालन करते हुए
अपना जीवन निर्वाह करना ।
क्षात्रधर्म को मानना व उनके अंतर्गत आने वाले नियम ही उनके उसूल हैं जिनका पालन करना क्षत्रियों के लिए अनिवार्य है।
वैदिक काल से चले आ रहे सिद्धांत{સોલંકી નિયમવાળી સે(सोलंकी वंशावली पुस्तक के अनुसार)} :-
१.क्षात्रधर्म का पालन करना व उसपर अडिग रहना।
२.आस्तिक रहते हुए जीवन निर्वाह करना ।
३. क्रूरता का सहारा लिए बिना धन संचय करना ।
४. धर्मानुसार भोगों को भोगना ।
५. दीनता रहित प्रिय भाषण करना ।
६. शूरवीर रहना पण बढ़ चढ़कर बातें न करना ।
७. दानवीर रहना पण कुपात्र को दान न देना ।
८. साहसी हों पण घमंड न करना ।
९. दुष्टों के साथ मेल न करना ।
१०. बंधुओं से तथा प्रियों से झगड़ा न करना ।
११.ऐसे गुप्तचर न रखें जो राजभक्त न हो ।
१२. किसी को दुख दिए बिना ही काम करना ।
१३. दुष्टों से अपना अभीष्ट कार्य न करना ।
१४. अपने गुणों का वर्णन स्वयं न करना ।
१५. श्रेष्ठ पुरुषों से धन न छीनना ।
१६. नीच पुरुषों को शरण न देना ।
१७. बिना जांच पड़ताल दंड न देना ।
१८. गुप्त मंत्रणा को प्रकट न करना ।
१९. जिन्होंने कभी उपकार न किया हो उनका विश्वास न करना ।
२०. लोभियों का धन न देखना ।
२१. ईर्ष्या रहित होकर अपने पत्नी की रक्षा करना ।
२२. क्षत्रिय शुद्ध रहे परन्तु किन्हीं से घृणा न करना ।
२३. स्त्रियों का अधिक सेवन न करना ।
२४. शुद्ध भोजन करना ।
२५. उद्दंड छोड़कर पूज्यों का सत्कार करना ।
२६. निष्कपट भाव से गुरुजनों की सेवा करना ।
२७. पाखण्डी हीन होकर विद्वानोँ का सत्कार करना ।
२८. ईमानदारी से धन पाने वालों की मदद करना ।
२९. हठ/जिद्द न करना ।
३०. कार्यकुशल तथा शिक्षित होना ।
३१. किसी को झूठा आश्वसन न देना ।
३२. किसी पर कृपा कर आपेक्ष न करना ।
३३. बिना जाने किसी पर प्रहार न करना ।
३४. बिना कारण किसी पर क्रोध न करना ।
३५. शत्रुओं को मारकर शोक न करना ।
३६. कमल की भांति कोमल रहना ।
३७. स्वभाव में शांति रखना ।
३८. दूसरे से नहीँ दबना ।
३९. युद्ध मे पीठ नहीं दिखाना ।
४०. शौर्य,पराक्रम व वीरता रखना ।
४१. शोक नहीं करना ।
४२. बिना घबराहट के कार्यों में प्रवृत रहना ।
४३. दान देना ।
४४. धर्मपूर्वक शासन करना ।
४५. स्त्रियों का आदर करना ।
४६. सात्विक रहना व मदिरा से दूर रहना ।
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१००००००८. क्षात्रधर्म के विरुद्ध कुवचन न सुनना ।

(ऐसे कई उसूल हैं जिनका वर्णन यहाँ संभव नहीं है)
*इनका पालन न करने वाला पाप का भागी होता है व वो क्षत्रिय/क्षत्राणी नहीं रहते ।
*जो क्षत्रिय नही हैं  (मतलब सिर्फ नाम में परिवर्तन किए हो व अन्य जाति के होते हुए भी दावा करते हैं कि वो क्षत्रिय हैं) वे इनके बारे में नही जानते ।
*जो क्षत्रिय होते हुए भी अगर इसका पालन न करते व अगर भूल जाते या पालन नहीं करते तो वे क्षत्रिय धर्म से नहीं रहते ।
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Monday, 25 March 2019

राजपूत सोलंकी राजवंश शाखागोत्र

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 क्षत्रिय सोलंकी राजवंश शाखागोत्र

उत्पत्ति : प्राचीन चन्द्रवंश से/ब्रह्मा के चुलुक से
वंश : चालुक्यवंशी/अग्निवंश(प्राचीन चन्द्रवंश)
मूलपुरुष : सोंणक देव
गोत्र : भारद्वाज
गोत्रदेवी : ब्राह्मणी भवानी
शाखा : मार्दनिक
वेद : यजुर्वेद
उपवेद : धनुर्वेद
सूत्र : पारस्कर
कुलदेवी : खिंमज माताजी
इष्टदेवी : बहुचराजी माता
वृक्ष : खाखरो
कुलदेवता : विष्णुजी
इष्टदेव : सोमनाथ महादेव
साह : हर हर महादेव
तिलक : त्रिपुंड
उपाधि : महेश एवं ठाकुर
नगारा : रणजीत
डंका : कदम
भैरव : गोरा भेरू
अश्व : जर्द
वस्त्र : सफेद व भगवा
निशान : पंचरंगा
नदी : सरस्वती
ध्वजा : लाल(मुर्गा सहित)
ध्वजचिन्ह : मुर्गा
हथियार : तलवार,भाला,कटार
क्षेत्र : गुजरात व राजपुताना
गादी : समग्र भारतवर्ष
चारण : टापरिया
ढोल : बहल
हवनकुण्ड : अग्निकुंड
भस्म : रुद्राक्ष
गादी मुख : पूर्व दिशा
साम्राज्य : पूरा भारत (प्राचीन काल का भारत)

शाखा : सोलह+
 रावका,बालनोत,वाघेल,डेला,भुट्टा,नाथावत,वीरपुरा,खोदेरा,खेरादा,भरसुनडा,मलरा,सोलके,भोजवत,लंघा,क्लाचा,डहर,चहर,महिदा,राज इत्यादि

Sunday, 24 March 2019

सोलंकी राजवंश के शाखागोत्र

क्षत्रिय सोलंकी राजवंश शाखागोत्र

उत्पत्ति : अर्जुन
वंश : चन्द्रवंश
मूलपुरुष : उदयन
गोत्र : पाराशर
गोत्रदेवी : शारदा भवानी
शाखा : मार्दनिक
वेद : यजुर्वेद
उपवेद : धनुर्वेद
सूत्र : पारस्कर
कुलदेवी : महामाया माता
इष्टदेवी : बहुचराजी माता
क्षत्रदेवी : खिंमज माताजी
वृक्ष : बरगद
कुलदेवता : रुद्र महादेव
इष्टदेव : सोमनाथ महादेव
साह : हर हर महादेव, जय माताजी री, जय भवानी
तिलक : गोल व त्रिपुंड
उपाधि : राणा, दरबार, राव
नगारा : रणजीत
डंका : कदम
भैरव : मण्डोवर व खेतलाजी(काला&गोरा भेरू)
पितृदेव : बोधेबाबा
अश्व : पंचकल्याणी
वस्त्र : सफेद व भगवा
निशान : पीला एवं पंचरंगा
नदी : सरस्वती/यमुना
ध्वजा : लाल(मुर्गा व चन्द्र सहित)
ध्वजचिन्ह : मुर्गा व चंद्र
हथियार : तलवार,खांडा,भाला,कटार
क्षेत्र : गुजरात व राजपुताना
गादी : समग्र भारतवर्ष
चारण : खडियो/टापरिया
ढोल : बहल
हवनकुण्ड : अग्निकुंड
भस्म : रुद्राक्ष
गादी मुख : पूर्व दिशा
साम्राज्य : पूरा भारत (प्राचीन काल का भारत)

एक मात्र शाखा : राजकुमारोत
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Saturday, 23 March 2019

चन्द्रवंशी सोलंकी व अग्निवंशी / चालुक्यवंशी सोलंकियों की उत्पत्ति

 साभार:-सोलंकी आदित्यजी वैभव ।

 सभी ने देखा सभी ने सुना सोलंकियों के बारे में ।
इन्हें ही चालुक्य,चौलुक्य,चालुक,सोलंकी,सिलोंकी,मिलोंकी,चिलोंकी इत्यादि कहा जाता है ।

इनकी उत्त्पति की दो मत प्रचलित है :-
१. ब्रह्मा के चुलुक से
२. अनलकुण्ड से

क्या आप इससे सहमत हैं??

अगर इनकी उत्पत्ति अनलकुण्ड (अग्निकुंड) से हुई तो ये अग्निवंशी हुए व चारों के साथ सम्मलित हुए ।
दूसरे मत पर आए तो ये सबसे अलग चालुक्यवंशी हुए जो अकेले इस वंश से हैं ।
राजपूतों का इतिहास हमें लोकगाथाओं से ही मिलता आ रहा है ।
ठीक इसी तरह हमारे यहाँ भी मत प्रचलित हैं ।

चालुक्यवंशी/अग्निवंशी भारद्वाज गोत्र के होते हैं ।
चालुक्य व अग्नि के अलावा सोलंकी चंद्रवंश से ही हैं ।

अब आते हैं मत पर
हमारे पास तीन वंश के मत हैं यानी तीन उत्पति के स्रोत लेकिन इनसे वंश तो एक ही होगा कोई एक व्यक्ति ।
इसका सीधा उदाहरण ये है ।
प्राचीन से ही सोलंकी चन्द्रवंशी रहे हैं ।
पर बौद्ध धर्म के कारण लगभग सारे के सारे सोलंकी या तो बौद्ध हो गए या जैन हो गए ।
कान्य कुब्ज के द्वारा जैन से वापस परिवर्तित किये गए सोलंकी ही अग्निवंशी हैं ।
लेकिन इनसे भी कुछ न हो पाया व
बौद्ध व राक्षसों के बढ़ते अत्याचारों के कारण ब्राह्मणों व ऋषि मुनियों के अनुरोध पर ब्रह्माजी ने हथेली से सोलंकी को परिवर्तित कर चालुक्यदेव का निर्माण किया ।
ये थे सोलंकियों के तीन उत्त्पति रहस्य जो मुझे अपने पूर्वजों से ज्ञात हुआ ।  तो अब विषय आता है कि इन्हें पहचाने कैसे??
भारद्वाज गोत्र या तो अग्निवंशी कहलाये या चलुक्यवंशी सोलंकी। तो पराशर गोत्र वाले चन्द्रवंशी सोलंकी ।
चन्द्रवंशी सोलंकी की शाखागोत्र इत्यादि ।

वंश :- चन्द्रवंश ।
उत्पत्ति:- अर्जुन (उदयन)
कुलदेवी- महामाया माताजी
गोत्रदेवी:- शारदा माताजी
इष्टदेवी:- बहुचराजी माता
क्षत्रदेवी:- खिंमज माताजी
कुलदेव:- रुद्र महादेव
इष्टदेव:- विष्णुजी
भेरू:- काला एवं गोरा भेरूजी
शाखा:- राजकुमारोत
पितृदेव:- बोधेबाबा